Friday, March 27, 2015

आडी - टेडी लिकरो की तस्वीर

निजी सामान को खुला नहीं छोडते
निजी मन की बात यू ही नहीं करते
बोल री कवीता,अब कहॉ गफ्तगूु की जाये

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टूटे हैं रिशतोे के धागे
कहॉ चला अब तू,सुई -धागा लेके
दर्जी क्या ,अब कुछ नहीं सिता ?


 

कुछ अलग अलग रंग

फलसफहा सच का,किताबो में 
खूबसूरती से रहते है..
कहाँ है, ये ज़माने में ...
सड़को के किनारे पर बिकते फूल, प्लास्टिक है
सच थोड़ी ना है रे बुद्धू
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रोज़ आ जाती है मचलती लहेरे
भिगो जाती है गाँव मेरा
बेचैन सब इधर उधर भागते है
कोई बाँध बनता क्यों नहीं
ओ जान, अब तुम कहाँ हो
तेरी यादों की लहरो में डूबा हूँ
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तुम कब तक ठहरे रहोगे यहाँ ,
कोई चाहे आना तो
तो भी नहीं आ सकता ,
ये वन-वे है ज़िंदगी का, मेरी जान
आओ अब प्रेम करे

तुम्हारे होने से ज़िन्दगी कई  रंगो से भरी है  और ये  सब तुम्हारा है। . … हाँ सब तुम्हारा है। हाँ मैं भी।... अब खुश  

Friday, March 20, 2015

रिश्ता

हज़ार बातें ऐसे होती है जो लिखी नहीं जा सकती , उसके लिए कोई नए शब्द , नयी ध्वनि ढूंढना भी चाहो , तो नहीं मिलती ,ऐसे चीज़ो को एहसास कहते है शायद , पर एहसास की शीशी ही मुझे यहाँ  उडेलनी है ।
कभी कभी मुझे लगता है की अंदर से हम कितने खोखले होते हैं ,प्यार जैसी कोई शे तो होती ही नहीं ,हम उलझे से हर वक़्त ,जो न जाने किसी चीज़ की तलाश में लगे है ।
हम कभी खुद को हर वक़्त बहलाते  रहते हैं  सिर्फ  सुख के लिए , तो क्या सच में हम अपने दुःख -सुख के लिए सिर्फ हम खुद ही जिम्मेदार होते है क्या सिर्फ हम खुद ?

देखे है कई रिश्ते  जो कभी रिसते नहीं ,बस भरे से रहते है प्यार देने के लिए , प्यार भरने के लिए और कुछ कभी भरते ही नहीं ,न जाने कौन सा सुराग होता है उनमे ,जो रिसते ही रहते हैं  दोनों हाथो से सम्भालो तो भी ।
  कुछ रिश्ते  उम्र भर के लिए होते है जिन्हे खाद पानी की जरूरत है पर फिर भी है खुद में सम्पूर्ण।  कुछ लोग ओवरप्रोक्टेटिवे हो जाते है उस एक पर्टिकुलर रिश्ते को लेकर ,बाकी रिश्ते को देख  नहीं  पाते ।

क्या सही क्या गलत कौन जाने।  रिश्तो की डोर है खींचा नहीं जा सकता । 


Tuesday, March 10, 2015

सपना

एक देश था  उसका  कोई राजा और रानी नहीं था  पर उसकी अवाम थी  जो अपने मन का खा रही थी  पहन रही  थी  ओढ़  रही थी लड़कियाँ लड़को सी आज़ाद थी कही भी किसी भी वक़्त आने जाने के लिए । तब  भी, जब सूरज अपनी छाती पर आग से पड़े फफोलो  पर  चाँद की चांदनी का महरम लगाकर किसी कोने में सो रहा होता था । लड़कियाँ  बेधड़क  घूमती थी

कोई माँ अपना गर्भ दिखाने  नहीं जाती थी उन दिनों में, उस राज्य  में । लड़कियाँ के आने की भी धूम होती थी पृथ्वी की उन्नति की दुआ ठहरी रहती थी

काश ....

उठ री  आज का दिन दिया है डॉ ने तुम्हारे एबॉर्शन का। य़े लड़की नहीं चाहिए , मुझे बेटा चाहिए  वंश के लिए.....
किसी गांव का घर, जिस की छत पर आग से जलता सूरज खड़ा तमाशा देख रहा था सोच रहा था अभी चाँद क्यों नहीं आया चांदनी लेकर ,जबकि लड़की को मिटाने वाले आ  गए ।

सूरज के डूबने  का वक़्त लड़की के मिटने से तय होता है अब।




Monday, March 9, 2015

महिला दिवस

महिला दिवस  बहुत जोर शोर से मनाया गया  । बिना ये बात समझे की आखिर ये है क्या  ?? कुछ को दुःख था की ये स्पेसिफिक  महिला दिवस देकर हमारे साथ नाइंसाफी की गयी ,क्या बाकी के दिन  पुरषो के है ।जाहिर सी बात है पुरष -प्रधान समाज में  एक ही दिन महिला का क्यों ??

खैर अपनी अपनी समझ से सभी औरते से मनाती  रही ,इसे अपनी आज़ादी का दिन समझ कर ।

बहराल ,ये दिन औरतो को समानता मिलने की ख़ुशी में  निर्धारित किया गया , ये बात अलग है  की समानता के लिए  आज  भी  औरते अपनी युद्ध पर जुटी हुई है १९०८ में  us ने औरतो को वोटिंग करने  का  अधिकार दिया गया जो अंतरराष्ट्रीय  महिला दिवस के रूप में स्थापित कर दिया गया । इसे मानाने की जरूरत है पर एक सोच के साथ एक समझ के साथ , खुद को ये याद दिलाते रहना चाहिए की चलना अभी बहुत है थकने से पहले , टूटने से पहले  और बिखरने से पहले ,आसमान और ज़मीन पर  पुरष और स्त्री का भेद हटाकर ।

ये सबको पता है अच्छा और बुरा दोनों ही लिंग में है  मगर फिर भी  कदम से कदम मिलें तभी कंधो से कंधो से मिलेंगे ।

वैसे मेरे मन था आज India's  daughter के  बारे में लिखने का, क्योंकि वो भी एक औरत थी और जो शहीद हुई है औरतो की लड़ाई के लिए जो  नींव  का पत्थर  बनी है उन्हें  मेरा  शत -शत प्रणाम ।

अजीब सी बात है दुनिया के सभी मुल्को में आये दिन रेप  , बच्चो के साथ अनैतिक  व्यवहार होता है औरतो के साथ  अन्याय होता है ,होता रहता है तब कोई चैनल उन बातो पर डाक्यूमेंट्री बनाकर दर्शको को क्यों नहीं दिखाते ?? लीजिये फिर गलत समझने लगे , मैं तो महज एक सवाल कर रही हूँ।

पूरी दुनिया के पुरुषों  की सोच  में औरत सिर्फ ऑब्जेक्ट ऑफ़ डिजायर ही है किस तरह उसे हासिल किया जाए।अजमाइश  के लिए चाहे  तो पूरी  दुनियाँ में एक साथ अँधेरा कर दीजिये फिर देखिये मुट्ठी भर पुरष ही मिलेंगे जो  उनके मन और उनके  सम्मान की फ़िक्र करते हो ।

 हमारे देश की धज्जियां  कोई भी उड़ने आ जाता है हम घर वाले  ही अपनी लाज नहीं बचाते । तो बाहरी लोग से क्या उम्मीद ??जब कोई सड़क  पर मर रहा हो ,बुरी हालत में हो तब हम अपना भला और भलाई सोच निकल जाते है और दूसरे दिन उस हादसे का दुःख मानाने के लिए कैंडल्स  लिए घूम रहे होते है

मेरा भारत  महान ,फिर india 's daughter  देख भारत को गालियाँ  दे रहे होते है । कौन है ये भारत  ?वो जिस पर डाक्यूमेंट्री  बनी  या वो  जो सड़क पर मुंह फेरकर  चलता है या  वो  कैंडल्स लेकर प्रोटेस्ट मार्च में  खडा हुआ  या वो जो पुरुषों  से जूझ रहा था बस के अंदर ??

पता नहीं औरतो के लिए कौन सी जगह है ??जहाँ वो लिपस्टिक लगाएगी , डिज़ाइनर कपडे पहन सके और ऐसे फुदक सके जैसे अपने घर के आँगन में हो ,पर दुःख तो यही है आँगन भी अब सुरक्षित नहीं। ....

महिला दिवस फिर आएगा एक नयी सोच और एक नयी लड़ाई लेकर। तब तक के लिए  महिला दिवस की ढेरो बधाई।

Wednesday, March 4, 2015

जीना है मुहब्बत से

जब अक्सर  खुद  के साथ  बैठती हूँ तो खुद को छुट्टे सिक्को की तरह  पाती हूँ । जो यहां  वहां छुट्टे से पड़े रहते है साथ करने पर बजते तो बहुत है पर बंधे हुए नोट की तरह एक साथ खर्च नहीं हो सकती । मुझे तो  खर्च होना भी  है तो  आहिस्ता आहिस्ता ,चिल्लर हूँ बज बज कर ही चलूंगी ,मन को महसूस कर कर के । खुद से मिलने के लिए मुझे बड़ी जुगत लगानी पड़ती है । कई बार ऐसे कोनो में छिपकर बैठना पड़ता है जहाँ से खुद को सुन सको , कह सको की "मुझे तुमसे प्यार है नीलम  "

क्यों प्यार के लिए  हम दूसरो से शिकायत करते  है । जबकि ये तो  पता  ही  नहीं की हमने आखरी बार खुद से मुहब्बत कब की, मुहब्बत देने की शे है पर खुद के ख़ज़ाने को भरना भी जरूरी है खुद को भरने के लिए खुद के साथ जीना कितना जरूरी है  वर्ना सांस लेना सिर्फ एक रिवायत हैं

मुझे जीना हैं प्रेम से भरकर , मन से भरकर । हर एक सांस ख़ुशी से , क्योंकि मुझे प्यार है खुद से


Monday, March 2, 2015

आज का मन

 सुबह से कई बार लिखने के लिए बैठी हूँ पर हर बार कुछ  न  कुछ काम देख उठ जा रही हूँ ।  कभी बाई, कभी घर की डस्टिंग के लिए तो कभी अपनी छोटी बेटी(Punthali) को लेने, फिर उसके साथ रहना उसकी  बेमतलब की ख़ुशी का हिस्सा बनाना और उसकी ढेर सारी बातें ,फिर  कुछ खिलाना और फिर Rakshandha  के आने के इंतज़ार के बीच ओर  हज़ार काम  आ जाते है

बच्चो के निकलते ही मुझे अशोक के ऑफिस जाने की तैयारी  करनी पड़ती है इन्ही भागते  दौड़ते वक़्त में से कभी कभी मैं मुठ्ठी में अपना वक़्त छुपाकर कोने में बैठ जाती हूँ  उस छोटे से वक़्त में कभी क्लास लेती हूँ तो कभी  घर से मिलती हूँ । कुछ दिन पहले तो कुछ static pages वाली साइट पर काम कर  रही थी अब वो खत्म है तो लगा अपनी लेखनी की जा सकती है मगर घर तो ऐसा  कुआँ  जो कभी भरता ही नहीं ,कितना भी कुछ करो ,कोई न कोई काम मुँह उठाये खड़ा रहता है । कभी बच्चो के शेल्फ देखो तो कभी घर के कोने ।

 अशोक का टाइम उत-पटांग  होने से  मैं  पूरी उथल पुथल  हो जाती हूँ । ये IT की दुनियाँ वाले बहुत नाचते है मैं भी इसी दुनियाँ से हूँ पर खुद को मैंने कंप्यूटर क्लासेज और बच्चो तक समेट लिया है

बच्चो के  Exams  आ गए है उन्हें पढ़ाना  हैं  फिर मिलती हूँ ॥


Sunday, March 1, 2015

अंतर्मन

सुबह सुबह अपनी रूह की निखारने का वादा खुद से किया है रोज़ उसे धोया करूँ ताकि हज़ारो की परत में मेल  जो चढ़ी है उसे  निकाल सको, निकाल सको अपनी बेचैन रूह को इन पन्नो पर । इतना आसान भी नहीं ये , क्योंकी मैं बहुत जल्दी वादा तोड़ देती हूँ । कारण कोई भी हो ,पर टिक  नहीं पाती। कभी घर के हज़ार काम बुलाते है तो कभी बच्चो के काम , कभी मेरे पेन्डिग पड़े काम चीख चीख कर आवाज़ देते है ,तो कभी वो किताबे जो मुझे पढनी है या फिर वो किताब जिन्हे पढने के लिए मैंने अपनी पढाई वापस शुरू की है । कभी कभी मेरे स्टूडेंट्स की क्लास चिल्ला -चिल्ला  कर आवाज़ देती है ।  कुछ भी तो नहीं छोड़ पायी हूँ । बस एक नौकरी बहार नहीं की,सब घर से शुरू कर दिया,बच्चो का मोह इतना बांधता है की अपने बारे में ज्यादा सोचा ही नहीं जाता  , सोचोगे तो हज़ार  गिल्ट  लेकर,मगर खुद को ज़िंदा रखने के लिए साँसों के अलावा भी बहुत कुछ जरूरी है।  ऐसी ही आकर दुनिया से चले जाना ,गवारा नहीं,इसलिए हर जगह  हाथ पैर चलाती  रहती हूँ।  मेरे भटकती आत्मा को थोड़ी शान्ति मिले उसे लगे की उसे नहीं नाकारा मैंने,उसका ध्यान रखा है कुछ  इंस्पायर होती हूँ कुछ अपनी रूह की सुनती हूँ

चलो देखते है कितने ईमानदारी रख पाती हूँ मैं