Thursday, April 30, 2015

कविता शब्दों की

जब  हज़ार  कविता  लिखने
के बाद , इस दुनिया की
पर्दा दारी खत्म हो गयी होगी
और सच आर पार होगा तब
मेरे दोनों हाथ काट दिए जाएंगे
तभी शब्द मेरे अंतर्मन में
कही चीख रहे होंगे , सिसक
रहे होंगे , ये सब करके, वो थककर
आत्महत्या करेंगे तब तुम मेरे
शब्दों  को सहारा देना
मरने से पहले तुम उन्हें
किसी जिल्द में बंद करके  की
उन्हें आवाज़ देना , मुझे
यकीन है तभी अँधेरा कई
कोनो में छुपा हुआ  होगा ,
तब तुम ये जादुई   शब्द की
चमक दिखाकर उन कोनो
को अँधेरे की जंग से आज़ाद
कराना

करोगे  न...  बोलो
आखिर ,आखरी प्रेम होगा  वो इस संसार में

Wednesday, April 29, 2015

झर झर कर गिरा वक़्त

वक़्त झर झर कर कही गिरा था
पत्तो  से बांध शाखों पर टांग
आई थी , तुम याद आते रहो
बीते वक़्त में ,हर पत्ते पर
चमकती सुनहरी शिहाई
छिड़की  थी

यादो का कोई रंग नहीं
हाथ में मेहँदी के रंग
खिले थे  उड़ते  उड़ते
पंछी मुंदरे पर जा बैठा
उसने ही शायद अभी
पीहू की आवाज़ लगायी थी

अधःखुली खिड़कियों
से झांकती धूप, ठहरी
रही , मैंने तभी पैरो
में मेहंदी लगायी थी
नम रही मेहँदी और
तेरी याद आई थी

अब तो मन की जोगी
न दीन  ,. न दुनिया की
मुझे खाली कमरो में
अपनी ही हसी सुनाई
दी थी

डूब  गया है जो सितारा दूर
उसके बिखरने की
आवाज़ आई थी
बिखरे है ख़्वाब सारे ,
कांच के टुकड़े  ने पैरो में
जगह बनाई थी  (  ये  आखरी  पंक्तियाँ  नेपाल वासियो के लिए )






Saturday, April 18, 2015

जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है

जब मन उलझा हो और अंदर बहुत तूफ़ान उठा हो तब एक यही जगह है मेरी जहाँ सब निकल देना आसान होता हैं शायद  किसी से उम्मीद भी नहीं की  जा सकती की कोई मुझे समझे  और क्यों समझे ?? किसी ने ठेका थोड़ी न लिया है मुझे  सुनने  का , मुझे समझने का  है न दोस्त !!

 सुनो न , कभी कभी लोग यूही बिना बातें समझे ,बिना बात की तह में गए कई बातों को गाँठ बाँध लेते है जल्दबाजी उनकी आदत है शायद ,क्यों इतनी जल्दी में फैसला ले लेते है बिना  सही गलत  को समझे  ,क्यों इतना ईगो , अपने बदन में गाँठ बांधकर  रखते है की खुद को सिवा  किसी को सही मानते ही नहीं।

पता है दोस्त , ये बात उस दिन की है जब में कॉलेज में आगे की सीट पर अपनी एक दोस्त के साथ जिसे मैं  बहुत अच्छा दोस्त   मानती थी उसके साथ बैठी थी , उसको काफी बार नोटिस किया था  हर बात पर compare करते , बिना मतलब का कम्पटीशन में उलझते , पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि दोस्त थी वो , कोई ऐसा करता है तो नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है बच्चा समझ कर ,क्या फर्क पड़ता है यही सोचकर जवाब भी नहीं देती ,  पर उस दिन तो उसने झगड़ा हो कर लिया इस बात पर लेकर की मैंने ये कह दिया की तुम्हारे लिए आसान है काम करना क्योंकि तुम्हारा एक ही बच्चा है और मेरे दो , और logically  ये बात सच है , एक से सारे काम आधे और दो से सारे काम डबल , उनके खाने से लेकर उनको पढ़ाने  तक का काम , अगर जरा सा भी लॉजिक हो तो आप आसानी से समझ जाएंगे की लोग दो बच्चे  आज के वक़्त में क्यों नहीं करते क्योंकि उतना ही टाइम दूसरे को   भी देना होता  जितना पहले को ,हाँ  मैं एक बच्चे को लेकर कई काम आसानी से कर पायी हो , चलो खेर,.. . दोस्त  पता  है  उन्हें ये बात, मैं  समझ ही नहीं आई  और मेरा प्रॉब्लम ये रहा है की मैं  झगड़ा देख ही पैनिक हो जाती हूँ  इसलिए  कोई जवाब देना मुश्किल होता है मैं सिर्फ इतना ही बोल पायी की जब तुम्हारे होंगे तब समझोगे , उस पर भी  अजीब  से जवाब था , और  दोस्त पता है वो दो लोग मुझसे झगड़ा कर रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे प्लान करके आये हो ,खेर  हद तब हुई जब उसने मेरी माँ से अपनी माँ का compare कर डाला और कह दिया मेरी बहुत अच्छी है , जानते हो क्यों ??? क्योंकि उसकी  माँ  सारा काम करके देगी और मेरी माँ इसलिए बुरी क्योंकि मैं अपनी माँ से काम नहीं लेती   ,माँ  बाप से काम न लेना क्या माँ बाप को ख़राब बना देता है ??

दोस्त पता है उन दोनों में से एक एक ने  तो मुंह बना लिया है पता नहीं क्यों , पर क्या किया जा सकता , जहाँ सिर्फ समझदारी का झंडा होता है उन्हें कुछ समझाया भी नहीं जा सकता। . वो अपनी समझ से मजबूर है होना
भी  चाहिए , क्योंकि हम अपनी सोच के सहारे आस पास की  दुनियाँ बनाते है जितनी  बड़ी सोच होगी  उतना कुछ नया ही सीखने को मिलेगा , ये  एक छोटी से बात जिसे सिर्फ मैंने अपनी तकलीफ बयां करने के लिए कहा था न की छोटा बड़ा  जताने के लिए, जिसे  ईगो पॉइंट बनाकर ईगो की गाँठ में बांधकर रखा है

समझ वैसे होती भी  बहुत छोटी है जानते हो दोस्त इतनी आसानी से की गयी बात आपका ईगो  जाग जाता है कितना मुश्किल होगा जीना फिर ???
हार बात पर ये उम्मीद करना की सामने  वाला मुझे समझे और में समझदार हूँ मेरे मुताबिक बात करे तो  फिर वो दोस्त कैसे ??
माँ का compare  करना तो बच्चो से भी ज्यादा छोटी हरक़त लगती  है खैर , मैं तो सब सीख रही हूँ। .आओ
सबका  स्वागत  है मैं  सीखने को तैयार हो ।

 ईगो हम इंसानो से ज्यादा बड़ा है। . ये सीख लिया मैंने ..

छोटी समझ में जीना उतना आसान नहीं दुआ करती हूँ सारे लोग मन से भी स्वास्थ हो।

समझ का क्या कभी भी आ जाएगी ,आप सुनिए  मेरी प्रिय आबिदा परवीन जी को , कहाँ ये छोटी  छोटी बेकार की बातों में वक़्त जाया कर रहे है

https://www.youtube.com/watch?v=C7UrtinSwzc



Tuesday, April 14, 2015

यूँ ही दिल की आवाज़

मैं बिक  ही जाता हूँ अल्फाज़ो  से
पूरी दुनियाँ में ,पर जौहरी कौन
जो हीरे की पहचान करे  ??

********************

सभी रखते है जेब में आइना
बात तो तब है जब सूरत न
देख ,सीरत देखा करे

*****************************

आते है सभी मुझे मुहब्बत का सबक
सिखाने , शागिर्द बन जाऊं , जो चुपचाप
 से  कोई मुहब्बत करे
***************

जो जुबान खोलूं तो बुरा
जो जुबान  बंद  रखूं तो बुरा
अब  तुम्हीं बताओ किस
 ताले में रखूं जुबान
*************

दिल  जो रखा हाथों में
तो गेंद से उछालते रहे
वापस मांगी  जो शय अपनी
तो वो जुदा से रहने लगे

*************************
सभी के लबो पर शिकवा सा
ठहरा है , मुहब्बत तेरे होने की
इतनी पैरवी कोई  क्यों करे ??  

Friday, April 10, 2015

प्यार,दोस्त

सुबह का वक़्त और हज़ार बातों से मन घिरा हुआ , उलझा सा ,बेटी के लिए लंच तैयार करते करते न जाने कितने ख्याल भी साथ पकते रहे । इतना छोटा सा दिमाग और क्या क्या सोच लेता है कुछ दोस्तों के लिए तो कुछ अपने लिए , दोस्त, कुछ दोस्त बिछड़ जाते है और कुछ नए जुड़ जाते है जुड़ने की ख़ुशी तो कुछ के बिछड़ने का दुःख, दुःख जो ख़ुशी से ज्यादा होता है ऊपर से ये भी नहीं पता हो की लोग आखिर रूठ क्यों जाते है चले क्यों जाते है ??

मैं भी कैसे पगली इस सोशल मीडिया के दोस्तों की बातें कर रही हूँ जो हक़ीक़त में तो कही होते ही नहीं , उन्हें दोस्त मान बैठते है जाने और आने से प्रभावित होते रहते है प्यार बड़ी अजीब शय है किसी से भी हो जाता है। . यार ,प्यार की बात कर रही हूँ इश्क़ की नहीं , मुझे आस पास के हर इंसान से बहुत प्यार हो जाता है मेरी हेल्पर जो है मुझे उस से भी बड़ी मुहब्बत है लेकिन ये बात कोई नहीं समझ सकता। कहाँ में इस प्रैक्टिकल की दुनिया में बिना नफा नुकसान सोचे काम कर रही हूँ वो भी प्यार का । प्यार को एक ही तरह से क्यों परिभाषित किया हुआ है ? ये मेरी समझ के परे है खैर, सब अपनी अपनी सोच से चल रहे है मैं ज्यादा देर तक पीड़ा में नहीं रहने वाली।नही तो मेरी हंसी दुनिया में तन्हा रह जायेगी और मुझसे ज्यादा अवसाद में रहा भी नहीं जाता ॥ ये एक जरिया है जहाँ मैं अपनी बात कहकर हल्की हो जाती हूँ मगर दुःख मनाने की कोई वजह नहीं की मैं दिन रात पीड़ा में रहूँ। शुभ दिन आपका और मेरा भी

Monday, April 6, 2015

गीला मन

सूखे फुलो के पास
गीला मन रख छोड़ा
उलझा  गीला मन
डाल पर जा बैठा
सुखकर फिर सूखे
पत्तो सा नीचे
गिर हवा में उड़ने लगा

सूखा मन हवा को कर
रहा है गीला गीला सा

Saturday, April 4, 2015

बुद्ध

जब लोग ज़मीन की खुदाई कर
रहे थ और खेतो में हल चलाकर
बीज बो रहे थे, तभी, ठीक तभी
मैं खुद के जन्म होने का इंतज़ार
कर रही थी
मैं भ्रूण हो गयी थी
मैं एक भ्रूण की तरह
एक अंडे में चली गयी
जिससे सभी मेरे अंगो का
मेरे दिमाग़ का वापस जन्‍म
हो , जन्म हो मेरी नयी सोच का
जन्म हो मेरी नयी दृष्टि का
जन्‍म हो नये मन का
मैं उसी तरह जैसे
बुद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे
बैठकर बुद्ध बने
मैं  भी उसी तरह का
गर्भ में रहकर  अपने बुद्ध होने के
जन्‍म में लगी थी

आस पास सभी ईश्वर थे
वो भी जो मेरे पास आकर
कटोरी नीचे रख हाथ फैलाकर
भीख माँग रहा था
और वो औरत भी जो अपनी
ग़रीबी का सौदा अपने ही जिस्म
से कर रही थी
वो भी ईश्वर ही था
जो लोगो की हत्या कर
पैसे बना रहा था
और वो नेता भी जो सिर्फ़
अपना घर के लिए हम सबका
घर लूट रहा था

ईश्वर वो भी था जिसने
निर्भया को भय दिया
ईश्वर तुम भी हो
पर इंसान कोई भी नहीं
और मैं, मैं तो बुद्ध होकर
नया जन्म लेना चाहती हूँ
जिससे मैं खुद को सही
प्रमाणित कर सकूँ

तुम जब आओ मेरे पास
तो आँखें बंद करके ,
प्रसन्न हो सको
की तुम सुखी हो
और सुख का सिर्फ़ यही मार्ग है

आओ न सब गर्भ में जाए
और नया जन्म ले बंद आँखो
के साथ