छोड़ दो जाने दो
जहाँ जाना है,
तुम बैठो
और देखो बकरियाँ
कहाँ कहाँ घूम रही है
घूमना आदत है
और वही पुँहचना
जहाँ से चले थे
पृथ्वी की नियति
एक वृत ही तो है
प्रारंभ और अंत
जहाँ जाना है,
तुम बैठो
और देखो बकरियाँ
कहाँ कहाँ घूम रही है
घूमना आदत है
और वही पुँहचना
जहाँ से चले थे
पृथ्वी की नियति
एक वृत ही तो है
प्रारंभ और अंत
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