Tuesday, December 2, 2008

चुनाव / आतंकवादी

हुह... चुनाव ... या अपने देश के लिए एक घरेलु आतंकवादी को चुनने का नोयता

अगर हम इनको चुन भी लेते है तो क्या गेरन्त्ति है की वो अपनी सुरक्षा से ज्यादा हमारी
सुरक्षा की चिंता करेंगे ? क्या गेरन्त्ति है की ये वाकई तट की सुरक्षा करेंगे ? ख़ुद को वाकई
एक
चौकीदार समझेंगे .... देश का चौकीदार .... क्या ये तब जिमेदारी वाली बातें करेंगे ..
या
तभी देश का मजाक करते रहेंगे ...क्या ये यकीं दिला सकते है की वो वाकई हमारे देश के
लिए
, हमारे लिए जान देने को तैयार रहेंगे ????

या फिर यूँ कहंगे की "मुझे तो बड़ा मज़ा आ रहा है इन गोली बारी की बीच या फिर ये सब तो
हिन्दुस्तां में होता रहता है ... या फिर किसी शहीद के घर जाकर उनका अपमान करेंगे .....

क्यों वोट दे इन्हे ..... ताकि फिर इन्हे लोटेरों को मौका मिले अपनी माँ की इज्ज़ते के साथ खलेने का

हर बेटा अपनी माँ की आबरू को ढकता है मगर मेरे वतन के बच्चे , जो इनके रक्षक बने हुए है
वही भक्षक है॥

अगर आतंक हटाना है तो पहले इन नेताओ को हटाओ ॥ फिर से रंग दे बसंती चोला... के स्वरों को
असमान में लहारो दो ॥ हमे हमारी घर की सफाई करनी है ॥ कचरा बहुत भर गया है झाडो हर किसी को
उठानी है फिर से देश के लिए जान देने के लिए तैयार हो जाओ......

मार डालो इस आतंक को जिसके वजह से आतंकवादी हमारे घर में आ बेठे है ... मार डालो इन सबको..
जिन्हें
ख़ुद से ज्यादा किसी से प्यार नहीं , जिनके लिए जनता का मतलब सिर्फ़ पैसा और कुछ नहीं..,....

1 comment:

रंजन गोरखपुरी said...

देश की ऐसी परिस्थिति में आपके जज्बातों का उफान स्वाभाविक है... पढ़ के अनायास जगजीत साहब की इक ग़ज़ल याद आ गयी:
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये...