अजीब सा मन होता है कभी कभी ,ठीक उस खूबसूरत सी औरत की तरह जो बहुत चंचल है अपनी खूबसूरती पर खुदी ही खुश होती है खुदी ही हज़ार खामियाँ निकाल कर दुखी,फिर कभी मन उस ऊँची कच्ची मुंडेर पर बैठ कर चहकता है जिस से गिर जाने का डर बना रहता है उड़ान जो भरेगा वो भी अपने कद से ऊँची। आसमान के पार भी चला जाता है मन कभी कभी। कुछ उड़ान मैं भर कर आती हूँ चलेंगे मेरे साथ ??
मन को माचिस के डिब्बिया से बहार निकल हवा में छोड़ दिया ,तब वो एक कहानी पत्थरो, रेत ,समुंदर सभी में से बिनता है वक़्त को थोड़ा मोड़ दो,वक़्त के कांटे का हाथ थामे चलते है पीछे की और जहाँ एक लड़की बैठी है भीड़ के बीच , सपनो को समेटे हुए ,कही गिरे नहीं,सपनों को बुनने वाली सिलियिों में लेकर,बुनकर ,सपनो को आँखों में टांक देती है
वो जिस जगह बैठी है उस जगह से सब बौने दिखाई देते है मध्यम वर्गीय लड़की को इतने बड़े जानेमाने कॉलेज में एड्मिशन मिलाना एक सपना ही था।
याद है उसे आज भी माँ अपने कपडे न खरीदकर उसके लिए किस तरह एक एक पैसा जोड़ती थी ये सोच लड़की जवान हो रही है उसके पास दो जोड़े ज्यादा होना जरूरी है और वो सभी के ब्याह और हर त्योहार पर एक वही जोड़ पहन लेती थी जिसे वो अलमारी में सहजकर रखती थी कितना समझाते थे माँ को ,पर वो किसी की नहीं सुनती नहीं थी यूँ तो पिता सरकारी कर्मचारी थे पर अपने भाइयो से अत्यधिक मोह वश घर में कुछ बचने नहीं दिया ।
बैठी सोच रही थी रूरकी कॉलेज तक पुहँचने में उसे काफी लम्बा रास्ता तय करना पड़ा था अब वो यहां से कुछ बनकर ही निकलेगी।दिन रात फिर दिए के लौ से जलती थी ताकि उजाला बन सके, इसलिए अंधेरो को अपनी मेंहनत की धार से काट रही थी तभी उन दिनों जहाँ कई लोगो से दोस्ती हुई ,वहीं कोई धीरे धीरे ,हल्की आहट से दिल में जगह ढूंढने लगा ।
कुछ हवायें इतनी सुहानी होती है की उनका बहता रहना तन और मन को बहुत अच्छा लगता है हलकी ब्यार
बह चली थी अब जलता सूरज जो रोज़ आग के गोले की तरह बरसाता था ठंडा रहने लगा, तपती कंक्रीट की बनी सड़के ऐसी, जैसे उन पर हर वक़्त ठंडा पानी छिड़का गया हो । आह !! प्रेम बरसने लगा था बदलो से, प्रेम उगने लगा था पत्थरों में
दिन पर दिन बीत रहे थे प्रेम परवान चढ़ रहा था , प्रेम के रंग निखर निखर रहा था,वो सब भूलने लगी थी, सारी दुनियाँ। उसको, ये प्रेम की दुनियाँ, कहाँ ले जाएगी उसे भी नहीं पता था,बस हवाओं में झूल रही थी
बरस बीत रहे थे उसकी सहेलियां उसे हेय नज़रो से देखती थी जैसे उसने कोई छूत की बीमारी लगा ली हो , सबकी नज़रो में वो कुछ नहीं थी कोई ख़ाक भी नहीं,उसे पर क्या फ़िक्र थी उसे पता था प्रेम सर्वश्रेस्ठ अभिव्यक्ति हैंप्रेम ने पूरी तरह से उसे नास्तिक बना दिया था ईश्वर तो कोई नहीं, प्रेम ही है
बरस बीत रहा था प्रेम भी बदलने लगा ठंडी हवायें गर्म लू होकर तन को छूने लगी, मन जलती धूप आंगर की तरह जलता,उसका प्रेम उसका था ही नहीं, वो किसी का नहीं था ,वो एक बुलबुला था जो कुछ देर के लिए
उसके साथ ठहरा और फिर फूट गया,उसको अब सच समझ आया । सड़के तपती थी सूरज के जलने पर, पानी कितनी भी डाला जाए वो आग की तरह जलकर पैरो के तलवो को छील देती है सूरज अघेंटी बन जल रहा था जिसकी जरूरत गर्मियों में बिल्कुल नहीं थी। क्या कसूर हुआ ,प्रेम ?? सिर्फ प्रेम करना ,भुला दिया खुद को , मान,अपमान सब,पर प्रेम कहाँ सबके लिए और न ही उसके लिए सब बने होते है
बेच कर घर सोना चाँदी ,मोलने चला मैं प्रेम
प्रेम की कीमत कोई बाचो मुझे ,खड़ा सड़क
पर, हाथ में चिमटा लिए घूमे दर दर फकीर
कोई नहीं बचा था उसके पास सब दोस्त सब सखियाँ सबके लिए वो अछूत हो गयी थी , सबकी निगाहे उसे अजीब नज़रो से देखा करती थी प्रेम नहीं पाप किया था उसने ,दिया ही तो था लिया तो कुछ नहीं,फिर ,
फिर क्या गुनाहा था ??
इस दुनिया के सबसे बड़ी विडम्बना है की सब लोग प्रेम के लिए तरसते है और उसकी कीमत लगाने में नाकाम हैं ये समाज ही ऐसा है जो दो चहरे लगाये हुए घूमता है एक वो जिसमे आप सिर्फ उतना ही देखते है जिससे उसकी कीमत लगाई जा सके और दूसरा वो चेहरा जो वास्तव में खाली है जिस की कोई कीमत नहीं,गरीब है चेहरा, वो ,जो प्रेम के लिए भूखा है तरसा है
वक़्त बीता , वो चलती रही और पहुंच गयी मंज़िल पर। आज वो एक mnc में खडी है और शाम को कुछ पुराने दोस्तो से मिलना है १० साल बाद ,इस सोच में है,उत्साहित हैं तब अचानक से फ़ोन बजता है और उसे होश आता है। खुश है वो ज़िन्दगी से ,सब कुछ मिला है उसे ,मान सम्मान, दोस्तों से मिलाने में कोई झिझक नहीं ये सोच ऑफिस छोड़ निकलती है
दोस्त सब महफ़िल लगाये बैठे है खुश है सब एक दूसरे से मिलकर चहक रहे है सब कुछ बहुत खूबसूरत सा
है और ये भी बहुत ख़ुशी से मिलने आती है तब कुछ देख मुंह फेर लेते है कुछ झूठा दिखावा करते है
और वो वहीं रह जाती है अछूत............प्रेम से छुइ हुई
मन को माचिस के डिब्बिया से बहार निकल हवा में छोड़ दिया ,तब वो एक कहानी पत्थरो, रेत ,समुंदर सभी में से बिनता है वक़्त को थोड़ा मोड़ दो,वक़्त के कांटे का हाथ थामे चलते है पीछे की और जहाँ एक लड़की बैठी है भीड़ के बीच , सपनो को समेटे हुए ,कही गिरे नहीं,सपनों को बुनने वाली सिलियिों में लेकर,बुनकर ,सपनो को आँखों में टांक देती है
वो जिस जगह बैठी है उस जगह से सब बौने दिखाई देते है मध्यम वर्गीय लड़की को इतने बड़े जानेमाने कॉलेज में एड्मिशन मिलाना एक सपना ही था।
याद है उसे आज भी माँ अपने कपडे न खरीदकर उसके लिए किस तरह एक एक पैसा जोड़ती थी ये सोच लड़की जवान हो रही है उसके पास दो जोड़े ज्यादा होना जरूरी है और वो सभी के ब्याह और हर त्योहार पर एक वही जोड़ पहन लेती थी जिसे वो अलमारी में सहजकर रखती थी कितना समझाते थे माँ को ,पर वो किसी की नहीं सुनती नहीं थी यूँ तो पिता सरकारी कर्मचारी थे पर अपने भाइयो से अत्यधिक मोह वश घर में कुछ बचने नहीं दिया ।
बैठी सोच रही थी रूरकी कॉलेज तक पुहँचने में उसे काफी लम्बा रास्ता तय करना पड़ा था अब वो यहां से कुछ बनकर ही निकलेगी।दिन रात फिर दिए के लौ से जलती थी ताकि उजाला बन सके, इसलिए अंधेरो को अपनी मेंहनत की धार से काट रही थी तभी उन दिनों जहाँ कई लोगो से दोस्ती हुई ,वहीं कोई धीरे धीरे ,हल्की आहट से दिल में जगह ढूंढने लगा ।
कुछ हवायें इतनी सुहानी होती है की उनका बहता रहना तन और मन को बहुत अच्छा लगता है हलकी ब्यार
बह चली थी अब जलता सूरज जो रोज़ आग के गोले की तरह बरसाता था ठंडा रहने लगा, तपती कंक्रीट की बनी सड़के ऐसी, जैसे उन पर हर वक़्त ठंडा पानी छिड़का गया हो । आह !! प्रेम बरसने लगा था बदलो से, प्रेम उगने लगा था पत्थरों में
दिन पर दिन बीत रहे थे प्रेम परवान चढ़ रहा था , प्रेम के रंग निखर निखर रहा था,वो सब भूलने लगी थी, सारी दुनियाँ। उसको, ये प्रेम की दुनियाँ, कहाँ ले जाएगी उसे भी नहीं पता था,बस हवाओं में झूल रही थी
बरस बीत रहे थे उसकी सहेलियां उसे हेय नज़रो से देखती थी जैसे उसने कोई छूत की बीमारी लगा ली हो , सबकी नज़रो में वो कुछ नहीं थी कोई ख़ाक भी नहीं,उसे पर क्या फ़िक्र थी उसे पता था प्रेम सर्वश्रेस्ठ अभिव्यक्ति हैंप्रेम ने पूरी तरह से उसे नास्तिक बना दिया था ईश्वर तो कोई नहीं, प्रेम ही है
बरस बीत रहा था प्रेम भी बदलने लगा ठंडी हवायें गर्म लू होकर तन को छूने लगी, मन जलती धूप आंगर की तरह जलता,उसका प्रेम उसका था ही नहीं, वो किसी का नहीं था ,वो एक बुलबुला था जो कुछ देर के लिए
उसके साथ ठहरा और फिर फूट गया,उसको अब सच समझ आया । सड़के तपती थी सूरज के जलने पर, पानी कितनी भी डाला जाए वो आग की तरह जलकर पैरो के तलवो को छील देती है सूरज अघेंटी बन जल रहा था जिसकी जरूरत गर्मियों में बिल्कुल नहीं थी। क्या कसूर हुआ ,प्रेम ?? सिर्फ प्रेम करना ,भुला दिया खुद को , मान,अपमान सब,पर प्रेम कहाँ सबके लिए और न ही उसके लिए सब बने होते है
बेच कर घर सोना चाँदी ,मोलने चला मैं प्रेम
प्रेम की कीमत कोई बाचो मुझे ,खड़ा सड़क
पर, हाथ में चिमटा लिए घूमे दर दर फकीर
कोई नहीं बचा था उसके पास सब दोस्त सब सखियाँ सबके लिए वो अछूत हो गयी थी , सबकी निगाहे उसे अजीब नज़रो से देखा करती थी प्रेम नहीं पाप किया था उसने ,दिया ही तो था लिया तो कुछ नहीं,फिर ,
फिर क्या गुनाहा था ??
इस दुनिया के सबसे बड़ी विडम्बना है की सब लोग प्रेम के लिए तरसते है और उसकी कीमत लगाने में नाकाम हैं ये समाज ही ऐसा है जो दो चहरे लगाये हुए घूमता है एक वो जिसमे आप सिर्फ उतना ही देखते है जिससे उसकी कीमत लगाई जा सके और दूसरा वो चेहरा जो वास्तव में खाली है जिस की कोई कीमत नहीं,गरीब है चेहरा, वो ,जो प्रेम के लिए भूखा है तरसा है
वक़्त बीता , वो चलती रही और पहुंच गयी मंज़िल पर। आज वो एक mnc में खडी है और शाम को कुछ पुराने दोस्तो से मिलना है १० साल बाद ,इस सोच में है,उत्साहित हैं तब अचानक से फ़ोन बजता है और उसे होश आता है। खुश है वो ज़िन्दगी से ,सब कुछ मिला है उसे ,मान सम्मान, दोस्तों से मिलाने में कोई झिझक नहीं ये सोच ऑफिस छोड़ निकलती है
दोस्त सब महफ़िल लगाये बैठे है खुश है सब एक दूसरे से मिलकर चहक रहे है सब कुछ बहुत खूबसूरत सा
है और ये भी बहुत ख़ुशी से मिलने आती है तब कुछ देख मुंह फेर लेते है कुछ झूठा दिखावा करते है
और वो वहीं रह जाती है अछूत............प्रेम से छुइ हुई
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