Sunday, February 8, 2015

जायका नमकीन

आसमान को छूने इमारतों ने हाथ ऊपर किये
ज़मीन से लिपटे छोटे मकान सुस्ता रहे

तुलसी के चक्कर
घंटी की धवनि
सुबह की अज़ान
मन की चहक
ज़मीन पर बिखर रही है
आसमान के परिंदे
झूलते रहे ,रात भर
सुनो न , रात के परिंदो
ने बहुत पी ली थी
आँख खुली नहीं
आसमान की  जुबान
का जायका  नमकीन
टकीला शॉट अभी
भी बिखरा है मन पर