जब सारे सामान,
काम के और बेकार के
बिक रहे थे कम -बढ़ दाम में
और लोग भी बिक रहे थे
अपने बोली लगा लगा कर
तब, मैं लफ्ज़
की बोली लगाने के
लिए बन गया लेखक या कवि
कीमत समझ सके
इसलिए अब मैं
बेचता हूँ लफ्ज़
जो जहन में तुम्हारे
उगाये नए बोली के पेड और
दाम की ख्वाइश
***************************
जब औरते खरीद रही थी
दीवानी होकर सोना तब
लफ्ज़ को उछाल मैने
दाम बड़ा दिए ,
अब सोचता हूँ
की काश मैं औरत
बन सकूँ,
जो पहनकर
घूमेंगी बिखरे ,
उजड़े, भटकते
मचलते शब्द की माला,
सोने से बड़े दाम में
.
काम के और बेकार के
बिक रहे थे कम -बढ़ दाम में
और लोग भी बिक रहे थे
अपने बोली लगा लगा कर
तब, मैं लफ्ज़
की बोली लगाने के
लिए बन गया लेखक या कवि
कीमत समझ सके
इसलिए अब मैं
बेचता हूँ लफ्ज़
जो जहन में तुम्हारे
उगाये नए बोली के पेड और
दाम की ख्वाइश
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जब औरते खरीद रही थी
दीवानी होकर सोना तब
लफ्ज़ को उछाल मैने
दाम बड़ा दिए ,
अब सोचता हूँ
की काश मैं औरत
बन सकूँ,
जो पहनकर
घूमेंगी बिखरे ,
उजड़े, भटकते
मचलते शब्द की माला,
सोने से बड़े दाम में
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