Sunday, January 20, 2019

गोथरी

मैने एक गोथरी बनाई थी
जिसमे कुछ हाथ से खिसकते
लम्हो का पेबंद लगाए थे
और उसमे चुपके से, तेरे
गिरती हँसी को और तेरी मुस्कराहट
को हथेली मे छुपा कर, वहाँ डाल आती हूँ
 वो गोथरी  मैने अपने
कमर के बाए तरफ बाँध रखी

जब कभी मन उदास होता है
तब उसे दाएँ हाथ से निकाल कर
दोनो हाथो की हथेलिया खोल तेरी
हँसी से भर लेती हूँ

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