Sunday, June 8, 2008

पन्ने/हम/वृक्ष

आओ तुम्हे एक कहानी बताऊं
खुले- - अधख़ूले पन्ने...........
एक किताब के ................

कुछ यहाँ कुछ वहाँ बिखर
.........................पन्ने
कूड़े के डिब्बे के पास पड़े
........................पन्ने
नगरपालिका के दवार पर पड़े
यहाँ वहा के पन्ने

बाबूजी के दफ़्तर में
कुछ तितर -बितर हुए
मन के पन्ने ........
तो कभी साहब के
खिलाफ़ खड़े पन्ने

कुछ पन्नो पर तेरी मेरी
कहानी लिखी ............
कुछ की बस बंद ही
............ज़ुबान रही
बड़ी बड़ी अजीब दस्ता
सुनाते पन्ने.......


कुछ पन्नो पर लाल
रंग का सुन पड़ा इंसान छपा
तो कभी लाल रंग को
छुपाते पन्ने..........

पन्ने बड़े विचित्र है
कभी तो इतिहास बनते
मामूली पन्ने .......
कभी काजल को आँख
से ढलका कर
कालिख से पुते पन्ने...

हवा में उड़ती पतंग
मन की उड़ान बन
जाए ये पन्ने..........
फिर पेड़ की शाख
से झूलते
ये पन्ने............

नदी में तेरते पन्ने
नाव की शक्ल में
मंज़िल मिले या नहीं
पर ख़ुद से ही .....
ये लड़ते पन्ने.......

परचुने की दुकान पर
पन्ने की बंधती पुडिया
कभी सर फिरे का
चालन मे.......
काटते ये बेचारे पन्ने

ग़रीब के घर खाने के लिए
बीछे ये पन्ने.......
देहाज में भी बस ये
ही जाते पन्ने.........

जनम हुआ तो
पन्नो पर लिखा जीवन
मरण पर बिलो के
पन्ने................

बिखरे -तिखरे को
समेटो ज़रा
वरना वृक्ष कटते रहेंगे
और बन जाएगे हम सिर्फ़ पन्ने..................

3 comments:

Anonymous said...

bahut khoobsoorat Neelam ji,aise hi likhte rahiye.

Neelam said...

Shukariya Vishal Ji

simmi said...

Great work yaar....keep going and keep giving inspiration to all of us!!!!!great