खुद में ही उलझी...
खुद में ही खोई हूँ
कहाँ कहाँ ढूँढा खुद को,
हर शे से पूछा ,
हर इंसान से पूछा ,देवी ,देवता ,
पत्थर ,मूरत, पानी ,हवा से पूछा ।
सब खामोश रहते है ...........,
कुछ खुद से ही कहकर......
मुझ पर हंस देते है ...
आईने के सामने जाकर जो रोई
तो उसने मेरी से सूरत दिखाकर
मेरे वजूद को पक्का सा किया.......
मगर मेरी आँखो में.......,
में ही नहीं..............॥
No comments:
Post a Comment