Saturday, October 11, 2008

ख्वाब

मेरा मन करता है.....
में उड़ जाओ सफेद पर्वतो में
जहाँ श्वेत झरने बहते हो...
जहाँ व्रक्ष मधुर ध्वनि में कुछ
बातें करते हो.........
उनका स्पर्श कुछ कहता हुआ
जाए कानो मे मेरे ...

जहाँ पास की बस्ती में
कही छोटी से झोपड़ी
मेरा घर हो.......
आँगन में हक़ीक़त के मासूम
फूल खिले हो.....
दिल में बस .....
प्यारी धड़कने हो....


सड़क जो गुज़रे कही मेरे
घर से वो सबको मंज़िल
तक ले जाए .......
जो भटक जाए तो
उसे वो रास्ता बतलाए .....

चाय की चुस्की मेरा किसी
पड़ोसी के साथ इस विश्वास से
की में और वो बस एक इंसान है
मज़हब तो खुदा तक जाने का
ईक अंदाज़ है .......

मेरी झोपड़ी मे खिलखलाहट हो
पैसा कम हो ,मगर आँखों में
खुशी की चमक हो....

दूर जो कोई मेरा दोस्त हो
उसकी खेरियत की खबर
हवाएँ आकर दे ....

खून सबका लाल है
इसको आज़माने के लिए
कही बंब बालस्ट ना हो...

कही मेरा ऐसा छोटा सा
घर हो ..
जो बहता झरने के पास
और रहता कही दिल में
हो....................

2 comments:

chunnu munnu said...

khawab nahi to zindagi nahi..... must say u hav nice vichars... keep the good show going take care..

Piyush k Mishra said...

bahut maasoom sa khwab hai aur pyara bhi.

bahut achhi kavita likhi aapne..aise jaise har khyaal aankhon ke saamne se guzar raha ho.