Sunday, December 7, 2014

मेरा शहर

मिट्टी  का बना कोई  घर नहीं  दिखता
नहीं दिखाता यहाँ अब कोई मिटटी का
सौंधी महक  नहीं महकती  मिटटी की
किसी के बदन से, शायद कोई लिपटा
ही नहीं है  बरसो से अपनी माँ  से
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मेरी बेटी चित्र में  एक
मिटटी का घर , दो
गाय , गोबर और
उसके आस -पास
खेत बनाती  है
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बड़ी इमारत में
लोग घूम रहे है यहाँ
वहाँ , सब के चहरे
और हाथ रंगे हुए है
रंग रोगन कराया है
घर में सभी ने,
हाथो से रंग धोते
नहीं और चहरे पर
हर बार नया रंग
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अब चित्र से धीरे धीरे
खेत ,गाय  और घर
गायब हो गया ,और
बन गई  एब्सट्रेक्ट पेंटिंग