हज़ार बातें ऐसे होती है जो लिखी नहीं जा सकती , उसके लिए कोई नए शब्द , नयी ध्वनि ढूंढना भी चाहो , तो नहीं मिलती ,ऐसे चीज़ो को एहसास कहते है शायद , पर एहसास की शीशी ही मुझे यहाँ उडेलनी है ।
कभी कभी मुझे लगता है की अंदर से हम कितने खोखले होते हैं ,प्यार जैसी कोई शे तो होती ही नहीं ,हम उलझे से हर वक़्त ,जो न जाने किसी चीज़ की तलाश में लगे है ।
हम कभी खुद को हर वक़्त बहलाते रहते हैं सिर्फ सुख के लिए , तो क्या सच में हम अपने दुःख -सुख के लिए सिर्फ हम खुद ही जिम्मेदार होते है क्या सिर्फ हम खुद ?
देखे है कई रिश्ते जो कभी रिसते नहीं ,बस भरे से रहते है प्यार देने के लिए , प्यार भरने के लिए और कुछ कभी भरते ही नहीं ,न जाने कौन सा सुराग होता है उनमे ,जो रिसते ही रहते हैं दोनों हाथो से सम्भालो तो भी ।
कुछ रिश्ते उम्र भर के लिए होते है जिन्हे खाद पानी की जरूरत है पर फिर भी है खुद में सम्पूर्ण। कुछ लोग ओवरप्रोक्टेटिवे हो जाते है उस एक पर्टिकुलर रिश्ते को लेकर ,बाकी रिश्ते को देख नहीं पाते ।
क्या सही क्या गलत कौन जाने। रिश्तो की डोर है खींचा नहीं जा सकता ।
कभी कभी मुझे लगता है की अंदर से हम कितने खोखले होते हैं ,प्यार जैसी कोई शे तो होती ही नहीं ,हम उलझे से हर वक़्त ,जो न जाने किसी चीज़ की तलाश में लगे है ।
हम कभी खुद को हर वक़्त बहलाते रहते हैं सिर्फ सुख के लिए , तो क्या सच में हम अपने दुःख -सुख के लिए सिर्फ हम खुद ही जिम्मेदार होते है क्या सिर्फ हम खुद ?
देखे है कई रिश्ते जो कभी रिसते नहीं ,बस भरे से रहते है प्यार देने के लिए , प्यार भरने के लिए और कुछ कभी भरते ही नहीं ,न जाने कौन सा सुराग होता है उनमे ,जो रिसते ही रहते हैं दोनों हाथो से सम्भालो तो भी ।
कुछ रिश्ते उम्र भर के लिए होते है जिन्हे खाद पानी की जरूरत है पर फिर भी है खुद में सम्पूर्ण। कुछ लोग ओवरप्रोक्टेटिवे हो जाते है उस एक पर्टिकुलर रिश्ते को लेकर ,बाकी रिश्ते को देख नहीं पाते ।
क्या सही क्या गलत कौन जाने। रिश्तो की डोर है खींचा नहीं जा सकता ।
No comments:
Post a Comment