निजी सामान को खुला नहीं छोडते
निजी मन की बात यू ही नहीं करते
निजी मन की बात यू ही नहीं करते
बोल री कवीता,अब कहॉ गफ्तगूु की जाये
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टूटे हैं रिशतोे के धागे
कहॉ चला अब तू,सुई -धागा लेके
दर्जी क्या ,अब कुछ नहीं सिता ?
दर्जी क्या ,अब कुछ नहीं सिता ?
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