Friday, March 27, 2015

कुछ अलग अलग रंग

फलसफहा सच का,किताबो में 
खूबसूरती से रहते है..
कहाँ है, ये ज़माने में ...
सड़को के किनारे पर बिकते फूल, प्लास्टिक है
सच थोड़ी ना है रे बुद्धू
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रोज़ आ जाती है मचलती लहेरे
भिगो जाती है गाँव मेरा
बेचैन सब इधर उधर भागते है
कोई बाँध बनता क्यों नहीं
ओ जान, अब तुम कहाँ हो
तेरी यादों की लहरो में डूबा हूँ
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तुम कब तक ठहरे रहोगे यहाँ ,
कोई चाहे आना तो
तो भी नहीं आ सकता ,
ये वन-वे है ज़िंदगी का, मेरी जान
आओ अब प्रेम करे

तुम्हारे होने से ज़िन्दगी कई  रंगो से भरी है  और ये  सब तुम्हारा है। . … हाँ सब तुम्हारा है। हाँ मैं भी।... अब खुश  

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