वक़्त झर झर कर कही गिरा था
पत्तो से बांध शाखों पर टांग
आई थी , तुम याद आते रहो
बीते वक़्त में ,हर पत्ते पर
चमकती सुनहरी शिहाई
छिड़की थी
यादो का कोई रंग नहीं
हाथ में मेहँदी के रंग
खिले थे उड़ते उड़ते
पंछी मुंदरे पर जा बैठा
उसने ही शायद अभी
पीहू की आवाज़ लगायी थी
अधःखुली खिड़कियों
से झांकती धूप, ठहरी
रही , मैंने तभी पैरो
में मेहंदी लगायी थी
नम रही मेहँदी और
तेरी याद आई थी
अब तो मन की जोगी
न दीन ,. न दुनिया की
मुझे खाली कमरो में
अपनी ही हसी सुनाई
दी थी
डूब गया है जो सितारा दूर
उसके बिखरने की
पत्तो से बांध शाखों पर टांग
आई थी , तुम याद आते रहो
बीते वक़्त में ,हर पत्ते पर
चमकती सुनहरी शिहाई
छिड़की थी
यादो का कोई रंग नहीं
हाथ में मेहँदी के रंग
खिले थे उड़ते उड़ते
पंछी मुंदरे पर जा बैठा
उसने ही शायद अभी
पीहू की आवाज़ लगायी थी
अधःखुली खिड़कियों
से झांकती धूप, ठहरी
रही , मैंने तभी पैरो
में मेहंदी लगायी थी
नम रही मेहँदी और
तेरी याद आई थी
अब तो मन की जोगी
न दीन ,. न दुनिया की
मुझे खाली कमरो में
अपनी ही हसी सुनाई
दी थी
डूब गया है जो सितारा दूर
उसके बिखरने की
आवाज़ आई थी
बिखरे है ख़्वाब सारे ,
बिखरे है ख़्वाब सारे ,
कांच के टुकड़े ने पैरो में
जगह बनाई थी ( ये आखरी पंक्तियाँ नेपाल वासियो के लिए )
जगह बनाई थी ( ये आखरी पंक्तियाँ नेपाल वासियो के लिए )
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