Thursday, April 7, 2016

इन्तजार...

जिन्दगी आसानी से कहाँ चलती है वो अपने हिसाब से सारे रास्ते ढूढं लेती हैं बहती रहती हैं एक कल कल करती हुई नदी की तरह ,जिसे पता भी नहीं किस तरफ मुड़ना हैं अगला कौन सा मोड़ हैं
जिने के लिए सब वजह ढूढंते हैं पर कई बार कोई भी वजह नहीं होती पर बेवजह आप प्रेम मे पड़ जाते हो ,और लगता हैं जिन्दगी को रफ्तार मिल गई ,वो ऐसा सोच ही रहा था कि चलती गाड़ी की रफ्तार बड़ गई और सब आँखो से बहने लगा ... क्या वो सच में प्यार मे था दर्द रिस रहा था वो पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता था
किसी मोड़ पर वो उसकी जिन्दगी में आकर ठहर गई थी यूँ खामोश उसे देखता रहा ,जैसे जिन्दगी ने आकर उसकी झूली फूलो से भर दी ..पता नहीं जिन्दगी कब कहाँ आपके दामन के लिए प्यार लेकर खड़ी हो ,कौन सा मोड़ आपके दिल की तरफ मुड़े.. तमाम दर्द से गुजरती हुई नदी को प्रेम एक ठंडे झूके सा छू जाता हैं
प्रेम ही है जो न जाने कब आता हैं न जाने कब जाता हैं जिसे आने से कोई रोक नही सकता तो उसके जाता देखकर रोक भी नहीं सकते ।
कोई मोड़ प्रेम को ठहरा सकता तो जाने वाले रास्ते कभी नहीं बने होते ।
वो ज़ार जांर रोया पर जाने वाला चला गया ..
कुछ थोड़ी नहीं बदला ,बस ,आँसू दिल मे बर्फ की तरह जम गए ,और हर साँस से ठंड़ी अहा निकलती रही ।
प्रेम की कोई गली नहीं जिसमे बैठकर कोई किसी को आवाज दे और कोई झट से बाहर आए... वो रास्ते हैं जिस पर खामोशी पसरी रहती हैं खामोशी की आवाज बुहत तेज होती हैं पर सुनता फिर भी कोई नहीं
खैर गाड़ी गन्तव्य तक पुहंच ही जाती है कभी टूटी यादों के साथ तो कभी प्यार मे..
तुम मुझ से वहाँ मिलना
जहॉ समुन्दर के दो किनारे न हो
और न ही धरती प्यासी हो अम्बर को चूमने के लिए
इन्तजार...

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