Thursday, April 7, 2016

चमकते ठोस मोती

साँसे जब गुलाम होने के लिए तरस
रही थी और
बकरीयॉ घास चरकर इन्तजार
कर रही उस रात का ,जब सब
खत्म होने वाला हैं 
वो मन भी ,जो घास के कोरो पर
उगने लगता है,एक चमकती
ओस की बूंद की तरह..
वो गड़रिया भी ,जो रोज
बकरीयों को मन चराने
आता है और वो रात
भी जो ओस बनकर
घास की कोरो पर
ठहर जाती है
सब एक दिन खत्म
हो जाएगा ,शेष रह
जाँएगे,चमकते ठोस
मोती
घास की कोरो पर..

No comments: