साँसे जब गुलाम होने के लिए तरस
रही थी और
बकरीयॉ घास चरकर इन्तजार
कर रही उस रात का ,जब सब
खत्म होने वाला हैं
वो मन भी ,जो घास के कोरो पर
उगने लगता है,एक चमकती
ओस की बूंद की तरह..
रही थी और
बकरीयॉ घास चरकर इन्तजार
कर रही उस रात का ,जब सब
खत्म होने वाला हैं
वो मन भी ,जो घास के कोरो पर
उगने लगता है,एक चमकती
ओस की बूंद की तरह..
वो गड़रिया भी ,जो रोज
बकरीयों को मन चराने
आता है और वो रात
भी जो ओस बनकर
घास की कोरो पर
ठहर जाती है
बकरीयों को मन चराने
आता है और वो रात
भी जो ओस बनकर
घास की कोरो पर
ठहर जाती है
सब एक दिन खत्म
हो जाएगा ,शेष रह
जाँएगे,चमकते ठोस
मोती
घास की कोरो पर..
हो जाएगा ,शेष रह
जाँएगे,चमकते ठोस
मोती
घास की कोरो पर..
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